हिंदी कहानियां - भाग 202
मदारी और बंदर
मदारी और बंदर लिंपी बंदरिया और लंबू बंदर चंदू मदारी के साथ ही रहते थे। लिंपी और लंबू अपने करतब दिखाते और चंदू अपनी बातों से और डमरू बजाकर लोगों को रिझाता। उनका खेल इतना मशहूर था कि दूर-दूर से लोग देखने के लिए आया करते। लिंपी और लंबू को चंदू बहुत प्यार करता और उनका ध्यान रखता था। कभी उसने उनको ना ही मारा-पीटा, ना ही कभी खेल दिखाने को मजबूर किया। इसलिए लिंपी और लंबू उसे बहुत चाहते थे, जब उनका एक छोटा सा, प्यारा सा बेटा हुआ, तो वह बहुत ख़ुश हुए, क्योंकि वह हरदम खेलता-कूदता रहता, इसलिए चंदू ने उसका नाम जंपी रख दिया था। जंपी जब कुछ बड़ा हो गया, तो उसने भी सारे करतब बड़ी जल्दी से सीख लिए या यह मानो कि उसके करतब लिंपी और लंबू से कुछ बढ़कर ही थे। उसके खेल देखकर लोग दांतों तले उंगली दबा लेते। जब लंबू और लिंपी कुछ बूढ़े होने लगे, तो चंदू उन्हें घर पर ही छोड़ देता और जंपी को खेल दिखाने के लिए ले जाता। उसका खेल देखकर जब लोग ताली बजाते, जंपी बहुत ख़ुश होता। कुछ लोग चंदू को पैसे दे देते और कुछ लोग जंपी को भी कुछ खाने-पीने की चीजें दे देते। उसे जब कोई दर्शक केला देता, तब वह बहुत ख़ुश होता। उसकी ख़ुशी देखकर चंदू मुसकरा उठता। पर धीरे-धीरे जंपी को यह महसूस होने लगा कि उनके खेलों में चंदू का तो कोई योगदान है ही नहीं! चंदू तो सिर्फ कुछ बोलता रहता है और डमरू बजाता है। इसमें कौन सी बड़ी बात है भला? यह तो कोई भी कर सकता है। एक बार जंपी ने इस बात का जिक्र अपने मम्मी-पापा से भी किया। उन्होंने उसे समझाया, “बेटा, तुम उम्र के उस दौर से गुजर रहे हो जब अपने अलावा कुछ भी नजर नहीं आता है। यदि चंदू खराब इनसान होता, तो क्या भला हमारी सेवा अब भी करता, जब हम उसके किसी काम के नहीं है? भले ही करतब तुम दिखाते हो, पर इन खेलों को दर्शक के आगे कैसे प्रस्तुत किया जाएगा, जैसी चीजें तो चंदू ही निश्चित करता है और वैसे भी हम भला इनसान के मन की बात कैसे समझ सकते हैं? उनसे वह क्या कहता है, यह भला तुम क्या जानो? जैसे चल रहा है, वैसे ही चलने दो!” जंपी को लगा, उसके मम्मी-पापा पुराने जमाने के हैं, वे भला उसकी बात कैसे समझेंगे? उसने मन ही मन निश्चय किया कि वह एक दिन चंदू के घर से भाग जाएगा और अकेला ही खेल दिखाया करेगा। चंदू ने तो वैसे भी ना ही कभी लिंपी या लंबू को बांधकर रखा था, ना ही वह जंपी को बांधा करता था। जैसे ही जंपी को भरोसा हो गया कि चंदू और उसके मम्मी-पापा सो गए हैं, वह घर से भाग निकला। यह तो जंपी जानता ही था कि किस मैदान में चंदू खेल कराता है, वह दिन भर इधर घूमता रहा और शाम को उस मैदान में पहुंच गया। वहां पर खूब सारे बच्चे खेल रहे थे। वह उनके ठीक बीच में पहुंच गया और उसने अपने करतब दिखाने शुरू कर दिए। जब बच्चे जंपी का खेल देखा करते थे, तो वह हरदम चंदू के साथ हुआ करता था, जिसकी वजह से उन्हें उससे डर नहीं लगता था, पर उसे अकेले देखकर बच्चे डर गए और इधर-उधर भागने लगे। एक बच्चे के पास केला था। केला देखकर जंपी के मन में लालच आ गया और वह उसे लेने के लिए उस बच्चे के पास पहुंच गया। उसे लगा कि उसने करतब तो दिखा ही दिए हैं, अब वह केला तो ले ही सकता है! यह देख बच्चे और ज्यादा डर गए। उनमें से जो बड़े बच्चे थे, उन्होंने दूसरे बच्चों से कुछ कहा। अब सब बच्चे मिलकर जंपी पर पत्थर फेंकने लगे। जंपी को यह देखकर बहुत हैरानी हुई कि जो बच्चे कल उसके खेल को इतने प्यार से देखा करते थे, वही उसे पत्थर मार रहे हैं! दर्द के मारे वह कराह उठा। ऐसे समय में उसे चंदू की बड़ी याद आ रही थी। उधर चंदू दिनभर जंपी को ढूंढ़कर परेशान हो गया था। वह उसी मैदान के पास से जा रहा था। बच्चों के मुंह से “बंदर, भागो!” जैसे शब्द सुने, तो वह समझ गया कि जंपी आसपास है। उसने प्यार से वही आवाज निकाली, जो वह उसे बुलाने के लिए निकाला करता था। जंपी का भी अकेले खेल दिखाने का उत्साह ठंडा हो गया था। वह तुरंत चंदू के पास पहुंचने के लिए दौड़ने की कोशिश करने लगा। पर एक पत्थर ने उसके पैर को ज्यादा जख्मी कर दिया था। वह चल नहीं पा रहा था। तब तक चंदू दौड़ता हुआ उसके पास पहुंचा। उसे इस तरह से तड़पता देख वह उसे प्यार से उठाकर घर ले आया। उसकी दिन-रात सेवा करता रहा। उसे प्यार देता देख, जंपी को वह बात समझ में आई, जो उसे मम्मी-पापा के कहने पर नहीं आई थी। उसने चंदू को प्यार से गले लगा लिया।